हमसफर

गुरुवार, 31 मार्च 2011

कितनों की बलि चाहिए मनरेगा ?

रामदेव विश्वबंधु


(दलित विमर्श, पंचायती राज व चुनाव सुधार के लिए फकीराना अंदाज में यायावर बने फिरनेवाले रामदेव जी लगातार अपने निजी जीवन को असहाय करने में लगे हैं। देश भर में घूम-घूम कर मंचों-अभियानों में शिरकत से उनका जी नहीं भरता। फिलहाल विश्वबंधु ग्राम स्वराज अभियान के प्रदेश संयोजन का भार संभालते हैं। किसी विषय पर बुलवाने के लिए आपका एक आग्रह काफी होगा, पर सालों रटते रहने पर एक पन्ना भी वे लिखकर नहीं देनेवाले। पलामू में नरेगा के सोशल आडिट के फलस्वरूप ग्राम स्वराज अभियान के कार्यकर्ता नियामत को उस नेक्सस की बलि चढ़ जानी पड़ी जो तंत्र पोषित है। इस पर लिखने के लिए माडरेटर के अड़ जाने पर उनके सामने कोई विकल्प नहीं था। हालांकि यह राइट अप मेल पर पांच मार्च 2011 को ही हाजिर था। अब जाकर यह तय हुआ कि इसे समधर्मियों को शेयर कने दिया जाए। यह आलेख आत्महंता को मिलने के बाद नौ मार्च को प्रभात खबर में छपा। टिप्पणी आमंत्रित है।)

आखिर कितने लोगों की बलि लेकर मनरेगा अपनी मंजिल पहुंचेगा। मजदूरी मांगने पर मजबूरों की पिटाई होती है। देर से मजदूरी के भुगतान के सवाल पर कभी-कभी मजदूर को आत्मदाह करना होता है। सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया जो मनरेगा को जवाबदेह और पारदर्शी बनाती है, इस प्रक्रिया से भी बिचौलियों-ठेकेदारों का मीटर उठता है। अधिकारियों-कर्मचारियों के कान खड़े हो जाते हैं। जमीनी कार्यकर्ता जो ग्रामीणों को योजनाओं की जानकारी एवं कानूनी बात बताते हैं, उन्हें ठेकेदारों द्वारा कहा जाता है कि ये लोग बरगला रहे हैं। इनकी भाषा में यह बरगलाना है तो हमारी भाषा में जन जागरूकता और जन शिक्षण।

शोषण-दमन, भ्रष्टाचार और सरकारी अनियमितता को उजागर करने पर इस दस वर्षीय राज्य में लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। ग्राम स्वराज अभियान और प्रो. ज्यां द्रेज के सहयोगी रहे ललित मेहता की 14 मई 2006 को बेरहमी से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। ठीक यही हस्र हुआ लातेहार जिला के मनिका प्रखंड के जेरुवा के नियामत का। ग्राम स्वराज अभियान के जमीनी और समर्पित कार्यकर्ता भूखन-नियामत की जोड़ी में से एक नियामत अंसारी को मार्च 2011 की शाम नक्सली उनके गांव से उठाकर ले गए और बेरहमी से पीट-पीटकर उनकी हत्या कर दी। यह घटना अचानक नहीं घटी। तीन साल पहले से ही ठेकेदारों और नक्सलियों की ओर से जान से मार देने की धमकी दी जा रही थी। 16 अक्टूबर 2008 को भी उन्हें घेरा गया था। 2 साल पहले वन विभाग ने भूखन-नियामत पर झूठा मुकदमा कर दिया था। इससे उन्हें एक सप्ताह जेल में ही रहना पड़ा था। पिछले साल अगस्त माह में नक्सलियों ने भूखन-नियामत के घरों पर ताला जड़ दिया था। कई बार इन दोनों को धमकी मिली थी। कई बार भागकर जान बचानी पड़ी। सरकार और पूरे प्रशासनिक हलके को इसकी जानकारी है, परंतु कोई कार्रवाई नहीं की गई। दरअसल माफिया, ठेकेदार, अधिकारियों और नक्सलियों का गठजोड़ सरकार के नियंत्रण से बाहर है। वे जो चाहते हैं, वही होता है।

सवाल यह उठता है कि भ्रष्टाचार, शोषण और अनियमितता के खिलाफ कौन बोलेगा। जो बोलता है उसे मौत की नींद सुला दी जाती है। ग्राम स्वराज अभियान के कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर मनरेगा लागू करने और सामाजिक सिुरक्षा योजनाओं का सामाजिक अंकेक्षण आदि काम करते रहते हैं। यही बिचौलियों, ठेकेदारों को नागवार गुजरता है। पिछले साल से ही धमकी देनेवाले ठेकेदारों के नाम प्रशासन को बता दिया गया था, परंतु अंत-अंत कर कार्रवाई नहीं हुई थी। नियामत के रिश्तेदार की ओर से की गई प्राथमिकी में नामजद अभियुक्तों में अबतक सिर्फ एक ही अभियुक्त की गिरफ्तारी हुई है। अब यह जगजाहिर हो रहा है कि नक्सली भी ठेकेदारों से लेवी लेकर उस हिसाब से काम करते हैं। आखिर नक्सलियों का सिद्धांत क्या है, वे क्या चाहते हैं ? ठेकेदारों-बिचौलियों का राज या कानून का राज ?  गरीब, ग्रामीण, सामाजिक कार्यकर्ता अपने गांव के लोगों को शिक्षित करता है। योजनाओं को विधिवत लागू करने का प्रशिक्षण देता है। उसे पैसे लेकर उठा लिया जाता है। एक तरह से नक्सली भी एक तरह के ठेकेदार ही हो गए हैं। यह ठीक है कि पलामू प्रमंडल में नक्सलियों के कई ग्रुप हैं। वे आपस के जानी दुश्मन हैं। पैसे के खेल और बंदरबांट ने सभी को अपने आगोश में ले लिया है। आखिर अब कौन सा मुंह लेकर जनता के बीच जाएंगे ? फ्रांसिस इंदवार और बिहार में मारे गए टेटे का कसूर क्या था ? आनेवाले दिनों में नक्सलियों को इन सवालों से दो-चार होना होगा। नियामत का कसूर क्या था? यदि कसूर था तो उसे जनता के सामने लाया क्यूं नहीं? नियामत की हत्या लोकतंत्र की हत्या है। विकास, अमन पसंद करनेवालों की ख्वाहिश ही हत्या है। सरकार को, प्रशासन को जवाब देना होगा। जनता को अपनी चुप्पी तोड़नी होगी। शायद यदि हूल (क्रांति) हो तो ये ठेकेदार बने नक्सली क्या करेंगे? इस हत्या ने सामाजिक कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ने की कोशिश है। शासन-प्रशासन यह जान ले कि ग्राम स्वराज अभियान के और भी कार्यकर्ता शहीदी जत्थे में शामिल होने को तैयार हैं। सूची भी दी जा सकती है।

(यह ठीक है कि नियामत जैसे लोग जनतंत्र की ताकत हैं तो नक्सलवाद भी तो जनतंत्र विरोधी नहीं है। व्यवस्था विरोध का मतलब कतई जनतंत्र विरोध से नहीं लेना चाहिए। जहां तक नियामत जैसे निरीह-भोले सामाजिक कार्यकर्ता की हत्या से उजागर हुई दुरभिसंधि का सवाल है तो यह नक्सलवाद में आए भटकाव का संकेत है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह भटकाव नक्सलवाद का अंदरूनी संकट है और वहां भी इस पर शिद्दत से कामरेड सोच रहे हैं। अंतर्विरोधों से नहीं उबरने पर छोटा घाव भी कैंसर बन सकता है, इसे हमारे कामरेड बखूबी समझते हैं। इस नाते पूरे नकस्लवादी आंदोलन को कठघरे में नहीं लिया जा सकता है। -मोडरेटर)

लेखक से r_vishwabandhu@yahoo.co.in तथा 09334363559 पर जाकर संपर्क साधा जा सकता है।

1 टिप्पणी:

  1. कुछ नयी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए रामदेव भाई को धन्यवाद। उनके जज्बे का कद्र करता हूं और बहुत विनम्रता के साथ उन्हें थोड़ा और गहरे में जाने की सलाह देता हूं। गहराई की सच्चाई यह है कि इस देश में ग्रामीणों, दलितों और वंचितों के लिए योजना बनाने वाले लोगों की नीयत में खोट है। योजना बनाने वाले को देश की जमीनी सच्चाई का कोई ज्ञान नहीं है और जिसे ज्ञान है वह जानते हैं कि किस तरह दूध की डाढ़ी फेंकर भुक्खड़ों को शांत किया जा सकता है। ये योजनाएं ग्रामीणों के लिए कम और ग्रामीण स्तर पर फैले गिद्दों को तृप्त करने के लिए ज्यादा बनायी जाती हैं, जो प्राकारांतर से समकालीन बाजारवाद को छुट्टा चरने की जमीन बना रहे हैं। जनता अब भी इन गिद्दों से अपरिचित है , उनके जागने तक हाशिये पर हांफते लोगीदारों की आहूति होती रहेगी।

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