हमसफर

शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

नहीं रहीं माया मैम

एक एनाउंसमेंट बाकी रह गया मैम

आज सुबह-सुबह बेटी को स्कूल से लौटा देख कर माजरा नहीं समझा। पूछने पर पता चला कि माया मैम नहीं रहीं. और इसी के साथ स्मृति की घिरनी में माइक पकड़े -प्यारे बच्चो- बोलतीं माया मैम की रील घूमने लगी. .
दो दशक से ऊपर हो गये उनसे परिचय को। शुरू के दस साल हम कोयलांचल के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान आइएसएल, सरायढेला में शिक्षक रहे। बाद के दस साल वह डीएवी कोयलानगर में रहीं. मैं ढेरों जगह का चक्कर काटकर झारखंड सरकार के अनुदानित इंटर कॉलेज में आ गया. फिर भी गाहे-बगाहे भेंट जारी रही. इस बार वह मेरे बच्चों के अभिभावक के रूप में थीं. पर भेंट के दौरान वही लगाव.
जब तक आइएसएल, सरायढेला में रहा, स्कूल का कोई ओकेजन नहीं जब उन्हें एनाउंसर के डायस पर नहीं पाया। एक शालीन मद्धम आवाज में आगंतुकों के स्वागत की जरूरी औपचारिकता के तत्काल बाद एक स्नेहिल मुस्कान भरी आवाज में प्यारे बच्चो कहती. एक संस्कृत शिक्षिका की हिंदी बेहतर हो सकती है, लेकिन अंगरेजी भी उतनी ही प्रभावी। यह उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का असर था। उनके पिता धनबाद के प्रतिष्ठित अंग्रेजी शिक्षक हुआ करते थे। वैसे वह केंद्रीय अस्पताल में स्टोर इंचार्ज थे। कभी-कभी संचालन में सहयोग के लिए मेरी स्क्रिप्ट होती थी। झरिया विधायक संजीव सिंह तब दूसरी या तीसरी कक्षा में पढ़ते थे। आज जब सूचना मिली मैम तो मैं अपनी पत्नी दीपिका से आपके एनाउंसमेंट का जिक्र कर रहा था। मैम आपको अंतिम बार देखने जाते वक्त शैलेन्द्र सर भी इसी का जिक्र कर रहे थे।
डीएवी से डीएवी तक : तीन दशक पूर्व उन्होंने डीएवी बालिका विद्यालय , धनबाद से शिक्षण पेशे की शुरुआत की थी. इसके बाद वह आइएसएल सरायढेला आ गयीं. फिर विद्यालय प्रबंधन में बदलाव के बाद वरीय शिक्षक इधर से उधर गये. इसी दौरान करीब वर्ष 2002 के आसपास वह डीएवी चली गयीं.
कर्मठ और सौम्य : इधर-उधर से मिली जानकारियों के मुताबिक उनकी निजी जिंदगी भारी उथल-पुथल से भरी रही. दांपत्य सफल नहीं रहा. पर मुझे कभी याद नहीं कि किसी ने कभी उनका चेहरा म्लान देखा हो या तनावग्रस्त. सौम्य मुस्कान हमेशा. घर में ट्यूशन, बच्चों को तैयार करना फिर स्कूल की ड्यूटी. किसी से कोई शिकवा-शिकायत नहीं.
शिक्षक का सम्मान ः इस बात को करीब दो दशक हो गये होंगे. मैं टेन डी में हिंदी की कक्षा लेता था. एक बार किसी वजह से पूरी क्लास को मैंने सजा के रूप में सभी छात्र को मार पड़ी थी. दूसरे दिन लगभग दर्जन भर छात्रों के हाथ में पट्टी, क्रेप बैंडेज, प्लास्टर बंधे थे. इसमें माया मैम का पुत्र रोहित भी था. पूछने पर मैम ने कहा कि कल छात्रों को आपने पनिश किया था. बस इतना ही. इसके सिवा शिकायत के एक बोल नहीं.

रवीश कुमार के नाम खुला पत्र


मैं कभी न तो एमजे का प्रशंसक रहा और न ही रवीश जी आपका कायल. सात जुलाई 2016 को बुधवार को एनडीटीवी की साइट पर -एमजे अकबर के नाम रवीश कुमार का पत्र- पढ़ कर कुछ बातों का कोलाज मन के पन्ने पर उभरने लगा. रवीश जी, जब पत्रकार ही अखबार के मालिक होते थे तब की बात और थी. तब के मूल्य, सरोकार, प्रतिबद्धताएं और प्राथमिकताएं अलग थीं. लेकिन तब भी अपनी तरह की ज्यादतियां थीं. अब जबकि मीडिया में पूंजी का अच्छा-खासा प्रवेश हो गया है. उसके सारे गुण-दोष भी पीछे-पीछे आ गये. मीडिया का कारपोरेटीकरण हो गया है तो परिप्रेक्ष्य के इस बदलाव का कुछ तो असर होगा ही. वही असर है जिसने पत्रकारिता की प्राथमिकताएं बदल डालीं. उसके सारे नखदंत नोंच डाले गये हैं. उदारीकरण की स्तुतियां और आरतियां किस घराने ने नहीं उतारीं. चैनलों का अपना तरीका अलग हो सकता है, पर सब एक ही घाट पर पानी पीते हैं.
एमजे पहले शख्स नहीं जिन्होंने अखबार-राजनीति में आवाजाही की. पर आपका हाहाकार जरूर नया है. इस शगल के चलते उन्होंने भी मीडिया की बड़ी-बड़ी नौकरियां छोड़ीं. सियासत के दांव हारने पर मीडिया की नयी पारी की जलालतें भी झेलीं. रवीश जी हम लोगों को भी कष्ट हुआ था जब उनसे भी पहले उदयन शर्मा ने चुनाव की खातिर रविवार की पत्रकारिता छोड़ी थी. फिर तो वह गायब ही हो गये. संतोष भारतीय का किस्सा तो पुराना ही हो चुका है. वेद प्रताप वैदिक को कौन भूलेगा. टाइम्स ऑफ इंडिया की हिंदी पत्रिकाओं को उन्होंने ही खरीदा था. उनकी राजनीतिक गलबांही तो अभी-अभी तक चरचा में थी. उनकी विद्वत्ता की धाक लोग मानते हैं. और रवीश जी, बिहार के लोग सियासी मोह के कारण आपको भी नहीं भुला पायेंगे. बिहार के गत चुनाव में पूर्वी चंपारण के गोविंदगंज से अपने भाई बीके पांडेय को टिकट दिलवाने के लिए आपने एड़ी-चोटी एक कर दी थी. कांग्रेस ने टिकट दे तो दिया, पर जीत सुनिश्चित करने का दांव अभी बाकी था. सो नीतीश जी का टांका काम आया. छह बार से जिस परिवार के लोग विधायक बनते आ रहे थे. उसी घर से थीं मीना द्विवेदी. वह दो बार लगातार जदयू से विधायक थी. उनका टिकट काट दिया गया. और इस तरह जीत का रास्ता साफ हो गया. इस पर आप क्या कहेंगे.