हमसफर

सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

मधु कोड़ा के हाल में आये जीतनराम मांझी

राजनीति की कौन सी तसवीर खींच रहे जीतन राम
मधु कोड़ा ने निर्दलीय विधायक की हैसियत से झारखंड में कांग्रेस के समर्थन से साल 2006 में सरकार बनायी थी. अभी जब बिहार के सीएम को जदयू ने पार्टी से निलंबित कर दिया है तो वह असंबद्ध विधायक की हैसियत के सीएम रह गये हैं. झारखंड में जो खेल कांग्रेस ने साल 2006 में किया था, वही खेल बिहार में भाजपा फिलहाल मांझी के कंधे पर बंदूक चलाकर कर रही है. भाजपा के खाद-पानी से ही मांझी के ख्वाब पल-बढ़ रहे हैं. कांग्रेस जो काम करती रही है, अब भाजपा उसी नक्शे कदम पर चलने का संकेत दे रही है. एक बार फिर साबित हुआ कि सत्ता का चरित्र एक होता है.

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

राजनीति की अनुकंपा या सत्ता का अनुग्रह सबको नहीं पच पाता.

राजनीति की अनुकंपा या सत्ता का अनुग्रह सबको नहीं पच पाता. कम से कम बिहार में जीतन राम मांझी को देखकर तो ऐसा ही लगता है.
राजनीतिक बाध्यता हो या सत्ता का व्याकरण, जिस जंगल राज के खात्मे के लिए नीतीश जी को भाजपा का दामन थामने में ऐतराज नहीं हुआ, वही नीतीश मोदी लहर में अस्तित्व बचाने की लड़ाई में जंगल राज के उस राजा यानी लालू को कितनी देर तक अपने खूंटे से बांधे रख पायेंगे, इसमें शक है. लालू मोदी विरोध के झोंके में अपनी दमित आकांक्षाओं को भूल जायेंगे, इसकी भी बहुत कम उम्मीद है. इस विचार शून्य राजनीति में जहां राजनीति पूरी तरह बाजार की शरण में नतमस्तक है, वहां निष्ठा का कोई मतलब नहीं बचा. जीतन राम मांझी इसी की मिसाल हैं. यह तो नीतीश जी का मुगालता था कि उन्होंने भक्त के रूप में अपना भस्मासुर चुना था. यदि राबड़ी की जगह कोई और होता तो लालू का भी वही हस्र होता जो आज नीतीश का है. राजनीति की सोशल इंजीनियरिंग को भानेवाले लालू का सबसे बड़ा फैक्टर (पोलिटिकल यूएसपी भी) उनका मसखरापन था, पर अपने मसखरापन को भुनाते-भुनाते उन्होंने बिहार का बेड़ा गर्क कर दिया, विकास पुरुष नीतिश भी अपने अहं की तुष्टि के लिए बिहार को लगभग उसी जगह लाने पर तुले हैं.
यदि तथाकथित विकास पुरुष नीतीश को राजनीति की लड़ाई में सबकुछ जायज लगता है तो क्या वजह है कि लड़ाई के एक मुकाम पर जाकर लालू अपनी ताकत को किसी भी सियासी बाजार में भुना लें..साफ जाहिर है कि इस दृश्य का दृश्यांतर भी हो सकता है.