हमसफर
बुधवार, 29 जुलाई 2009
उदय प्रकाश के बहाने
महंत योगी ने जो भी किया वह हिन्दी पट्टी के स्वनामधन्य बाप-दादाओं के सामने किया है। अब जो गाली पर उतरे हैं तो यह उनकी खीझ है। फिसलने या पिछड़ने पर तो खीझ होगी ही। हिन्दी पट्टी की विसंगति रही है की जब उन्हें मोर्चा लेना होगा तो वे पीछे रहेंगे। ऐसे में ग़लत आदमी हमेशा मोर्चा लेता रहा है। चित्रकार रजा, एम् ऍफ़ हुसैन, तसलीमा इसके उदहारण हैं कि कैसे ग़लत लोगों को आगे आने का मौका मिलता रहा है। हिन्दी पट्टी के करता-धरता ख़ुद से सवाल करें कि क्या योगी ने ग़लत आदमी को सम्मानित किया है? आख़िर जब उदय रो रहे थे तो किनके हाथों में रुमाल था। ऐसे में एक आदमी आगे आया है तो कहाँ से ग़लत है वह। क्यूँ नहीं कहते कि पिछड़ने का गम बर्दास्त नहीं होता। इस हाय-तौबा में वे सबसे आगे हैं जिन्हें उदय की रचनाशीलता से कई सरोकार नहीं। क्या व्प और रस वाले ऐसा ही नहीं करते?
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