tag:blogger.com,1999:blog-8986761258999733521.post265429356694812280..comments2023-11-02T03:29:41.621-07:00Comments on आत्महंता: वर्चुअल स्पेस की पत्रकारिता में जन की हैसियतउमाhttp://www.blogger.com/profile/14461674194250340733noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8986761258999733521.post-53815371357672969882011-04-01T03:29:19.900-07:002011-04-01T03:29:19.900-07:00ब्लाग अभिव्यक्ति का सिर्फ एक माध्यम है और इस नाते ...ब्लाग अभिव्यक्ति का सिर्फ एक माध्यम है और इस नाते उसकी हदें और सहूलियतें होंगी, हमें यह मान लेना चाहिए। हर दौर में जब कोई डिवाइस आती है तो पहले वह सीमाएं उजागर नहीं करतीं क्योंकि वह जरूरतों की प्रेरणा और दबाव में ईजाद होती है। और यह तुरत-तुरत की बात होती है। इस्तेमाल के क्रम में और विकास क्रम में वह प्रेरणा और दबाव डाइल्यूट होते जाते हैं। उपयोक्ताओं का दायरा भी बढ़ता जाता है और डिवाइस का वैविध्य भी सामने आता है। उसी क्रम से गैरजिम्मेवारी भी बढ़ती जाती है और तब माध्यम की सीमाएं संकटों को उजागर करती हैं। सोचिए जब पहली बार कलम या कागज का ईजाद हुआ होगा तो क्या वह कवि-कलाकारों के लिए तो नहीं लाया गया होगा। आइंस्टाइन ने जिस सापेक्षता सिद्धांत पर शुरुआती काम किया वह एक किरानी थे और उनके पास कोई संसाधन समृद्ध लैब नहीं था। वह रद्दी कागजों के पीछे ही सारी गणनाएं कर रहे थे। बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं डाक्टरों ने जिस स्टीफन हावकिंग को जीवन का संकट दीखाकर बेकार कह दिया था उनकी संतानें हैं और विज्ञान के लिए एक ब्रीफ हिस्टरी आफ टाईम में सबक सामने लाते हैं। अब उन्होंने ईश्वर को चुनौती देते हुए किताब लिखी है। वह कि लैब में काम करते हैं। वह तो कोई काम नही कर सकते। <br />किसी भी बंदी से होनेवाला नुकसान या होली में पानी की बर्बादी के बजाए क्रिकेट के बुखार से जीडीपी का अधिक नुकसान हो रहा है। जितनी दवाओं का ईजाद होता है तो क्या सारे शोध उपभोक्ताओं की जेब में झांकते हुए होता है क्या। बाईबल जब भी लिखी गई और अब भी हिब्रू को समझने वाले लोग बहुत नहीं थे न हैं। लेकिन इससे उसके प्रसार पर कोई फर्क नहीं पड़ा। इसलिए किसी माध्यम की आलोचना इस आधार पर नहीं होनी चाहिए कि वह माध्यम आम जन के बस में है या नहीं। देखना यह चाहिए कि माध्यम से आम जन के हित और सरोकार की बात की जा सकती है या नहीं। <br />हमें 26 वर्ष की आसमां महफूज के फेसबुक पर उस पोस्ट को नहीं भूलना चाहिए जो उसने 19 मार्च को किया था जिसमें उसने कहा था – लोगों मैं आज तहरीर चौक जा रही हूं। इस एक संदेश से 71.4 प्रतिशत की साक्षरता वाले आठ करोड़ के मिस्र में 50 लाख फेसबुक यूजर से 36 हजार समूह बने तथा 14 हजार नए पेज बने। हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी चौक पर। और नतीजा हमारे सामने है।उमाhttps://www.blogger.com/profile/14461674194250340733noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8986761258999733521.post-52973230519498995902011-04-01T00:19:18.708-07:002011-04-01T00:19:18.708-07:00इससे सहमत हूं कि साइबर पत्रकारिता आम लोगों से जुड़ ...इससे सहमत हूं कि साइबर पत्रकारिता आम लोगों से जुड़ नहीं सकी है। इस विषय पर लेखक के साथ निजी तौर पर अक्सर बहस होती रहती है। लेकिन साइबर मीडिया ने परंपरागत मीडिया के एकाधिकार को विकेंद्रीकृत किया है, जो सकारात्मक है। इसे सही दिशा देने की जरूरत है। निस्वार्थ और निर्लिप्त भाव से जनता का काम करने वालों का ख्याल कौन रखेगा ? वे भैंस चराते हुए कविता पढ़े, चौराहे पर नुक्कड़ नाटक करे या पेट काटकर ब्लॉग लिखे, हमारे लिए सरहानीय होना ही चाहिए।रंजीत/ Ranjithttps://www.blogger.com/profile/03530615413132609546noreply@blogger.com